
(खुले आसमान के नीचे पढ़ने को मजबूर है 87 बच्चे स्कूल की जर्जर इमारत दे रही हादसों को न्योता)
उत्तराखंड को एजुकेशन हव कहा जाता है । पर वही राजधानी देहरादून से महज 25 किलोमीटर दूर एक शिक्षा संस्थान बच्चों के लिए हादसे का घर बना हुआ है। जिसको दिखाने की कोशिश आज हम कर रहे हैं । सरकार तमाम दावे तो करती है, लेकिन धरातल पर स्थिति कुछ और ही नजर आती है। जी हां हम बात कर रहे हैं विकासखंड डोईवाला अंतर्गत राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय शेरगढ़ की। जहां पर विद्यार्थियों को शिक्षा देने के लिए अध्यापक तो हैं, लेकिन स्कूल भवन पूरी तरह जर्जर स्थिति में है। जहां बच्चे स्कूल जाते तो हैं पर अपनी जान जोखिम में डालकर ।
सरकार शिक्षा पर करोड़ों रुपये तो खर्च करती है, पर जमीनी हालात नोनिहलों पर भारी पड़ते दिख रहे हैं। चुनाव के दौरान सभी राजनीतिक दल स्वास्थ ओर शिक्षा सुधारने के बड़े- बड़े दावे करते हैं। पर जैसे ही चुनाव हुए सरकार बनी सब खत्म, इस ओर कोई ध्यान नही देता। अगर हम बात करें डोईवाला विधानसभा क्षेत्र की तो यहां के विधायक लगभग 4 सालों तक प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे, ओर उनके सीएम बनने से यहां की जनता को बड़ी उम्मीदें भी थी, पर आज डोईवाला के दर्जनों स्कूलों की जर्जर स्तिथि को देख सरकार की मंशा पर सवाल खड़े होते है। हालांकि इस स्कूल को लेकर स्थानीय जनता कई बार आवाज उठा चुकी हैं, पर स्कूल भवन बनाये जाने की फाइलें सरकारी कार्यालयों में ही दफन हो कर रह जाती हैं, जिसका खामियाजा नोनिहलों को खुले आसमान के नीचे शिक्षा ग्रहण कर भुगतना पड़ रहा है।
स्कूल की इमारत जर्जर होने की वजह से कइ बार छत का प्लास्टर गिर गया, जिससे छात्र चोटिल भी हो गये, ओर इसके बाद स्कूल प्रशासन ने छात्रों की कक्षाएं खुले आसमान के नीचे चलाना ही सही समझा।
लेकिन बरसात के दिनों में मजबूरी की वजह से स्कूल के बरामदे में ही बच्चों को पढ़ाना पड़ता है। लेकिन शिक्षा विभाग ओर सरकारी तंत्र अभी तक इस विद्यालय की सुध नहीं ले पाया है। जिस कारण यहां शिक्षा ग्रहण कर रहे कक्षा 6,7 व 8 के लगभग 87 बच्चों को बाहर ग्राउंड व बरामदे में बैठकर पढ़ाई करना उनकी मजबूरी बन गई है।
वही 5 शिक्षक भी इन विद्यार्थियों के लिए सरकार ने नियुक्त किए गए हैं। लेकिन उपयुक्त स्थान ना होने से नौनिहालों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यह विद्यालय वर्षाे पुराना व जर्जर होने के बावजूद भी सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। यहां के जनप्रतिनिधियों व सरकारी तंत्र की अनदेखी इन छात्रों लिए यह एक बड़ी समस्या बनी है, अब ऐसे में हम और आप कैसे उम्मींद कर सकते हैं की जिस स्कूल में हमारे बच्चें शिक्षा ग्रहण करने जा रहे हैं वो वहां सुरक्षित है भी या नहीं…. आज सबसे बड़ा सवाल यही है जिसका जबाव सिर्फ सरकार और प्रशासन के पास है । अब देखना ये होगा की कब तक सरकार इस और ध्यान देती है